लफ़्ज़ों में तो कुछ बयान नहीं किया मैंने,
आँखों में तुमने जाने क्या पढ़ लिया?
मगर जानां,
अब तुम इतनी नादान भी नहीं...
जानती तो हो,
क़ानून ऐसे मुआहिदे नहीं मानता!
आँखों में तुमने जाने क्या पढ़ लिया?
मगर जानां,
अब तुम इतनी नादान भी नहीं...
जानती तो हो,
क़ानून ऐसे मुआहिदे नहीं मानता!
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