Saturday 12 April 2014

कभी यूँ भी तो हो...

कभी यूँ भी तो हो

तुम, स्टीयरिंग पर उँगलियाँ बजाते,
स्टीरियो के साथ गाते
कोई नग़मा गुनगुनाओ मेरे लिए
मैं, तुम्हारे झिड़कियों के बावजूद
शीशे गिराकर कार के
समुन्दर की सीली* हवाओं का इस्तक़बाल* करूँ

तुम, लाइटर हाथों में लिए
क़हक़हे लगाते हुए, ठिठक जाओ मुझे देख
गिरा कर धीरे से वह अधजली सिगरेट
एड़ी तले मसल दो उसे
मैं, अपने हील्स भूल कर कहीं
ठंडी सफ़ेद साहिल की रेत पर
नंगे पाँव भागूँ तुम्हारे पीछे

तुम, लैपटॉप पर थिरकती उँगलियों को रोक
मेरा आँचल थाम लो
मैं, किसी नज़्म को कागज़ पर अधूरी छोड़
उसे पूरी करूँ सीने पर तुम्हारे

कभी यूँ भी तो हो
तुम परेशान हो मुस्तक़बिल* का सोच कर
मैं माज़ी* को भुला कर मुत्मईं* हो जाऊँ

*सीली - moist /humid
*इस्तक़बाल - welcome
*मुस्तक़बिल - future 
*माज़ी - past
*मुत्मईं - satisfied

Tuesday 8 April 2014

a new beginning

वो घर छोड़ दिया मैंने
जहाँ कभी हम साथ दाख़िल हुए थे
तुम्हारा कुछ सामान भी बाँध लायी हूँ
फुर्सत मिले तो आकर ले जाना

कुछ अधजले सिगरेट के टुकड़े
बिस्तर के कोने में ऐसे सिमटे पड़े थे
मानो जल्दी में बुझाए हों किसी ने
शायद मेरी नाराज़गी के डर से छिपाया था
या बाद के दिनों में,
नाराज़गी में फ़ेंक दिया हों दो-तीन  कश लेकर

तुम्हारे किताबों की शेल्फ़ पर एक कोने में
पीले पन्ने वाली
गुलज़ार की नज़मों का कलेक्शन पड़ा है
उसके पहले सफ़हे* पर
तुमने अपनी बेतरतीब* हैंड-राइटिंग में लिखा था
एक छोटा सा शेर मेरे लिए
ज़रा पानी छलक गया था, मेरा नाम मिट गया है अब

सिराहने वाली टेबल पर
चंद अधलिखे ख़त भी रखे थे
कुछ में मुझे मुखातिब* किया है तुमने
कुछ में रास्ता बदलने की वजह समझायी है
कहने को कितना कुछ था तुम्हारे पास
कुछ कह ही देते - गुफ्तगू* हो जाती

अलमारी के नीचे के कोने में
एक पुरानी सफ़ेद शर्ट भूल गए तुम 
मरीन ड्राइव पर जब एक नुकीले पत्थर से लगकर
मेरे बांह में हलकी सी खरोंच आ गयी थी
लाख डांटने के बावजूद
शर्ट की आस्तीन रख दी थी तुमने
खून के दो छोटे धब्बों को
कभी धोने ही नहीं दिया था

कैमेरे की एक पुरानी रील भी पड़ी है
हिम्मत नहीं हुई स्टूडियो जाने की
सोचती हूँ धूप दिखा दूं उन्हें
यादें दिल में ही अच्छी लगती हैं

बाथरूम के आईने में
बहुत टूटा बिखरा, लहू-लहू सा
अपना अक्स भी दिखा मुझे
रूह के ज़ख्म भी, जिस्म के नील भी मिले

वो घर छोड़ दिया मैंने
तुम्हारा कुछ सामान भी बाँध लायी हूँ
फुर्सत मिले तो आकर ले जाना
इन्हे संभाल कर रख सकूँ
मेरी नए घर में इतनी जगह नहीं

*सफ़हे - page
*बेतरतीब - haphazard
*मुखातिब - address
*गुफ्तगू - conversation

Sunday 6 April 2014

फ्लैशबैक

कुछ था?
या कुछ भी नहीं?

वो जो साथ की रातें थी
क्या सिर्फ मैंने ख्वाब जलाये थे?
मेरे नाम का एक भी नहीं था
जो साहिल पर घरौंदे बनाये थे?
सजदे जो करते थे तुम
मेरे नाम की कभी कोई दुआ नहीं थी?
घंटों फ़ोन पे बातें जो थी
उनमें रूह की कोई सदा* नहीं थी?
बारिशों में जो भीगे थे तुम
मेरी खातिर? या मजबूरी थी कोई?
नज़्म भी मेरे नाम की लिखी थी
रफ़ाक़त* थी या तजुर्बा* था कोई?

आज मिले हो यूँ अजनबी बन कर
कि
समझ नहीं आता
मुहब्बत थी
या दिल्लगी थी कोई!

 *सदा - call out to
*रफ़ाक़त - fellowship
*तजुर्बा - experiment

अभी देर नहीं हुई

मैंने तो यूँ ही कह दिया था,
"सुनो! चाहो तो पलट जाओ,
कि मंज़िल दूर है अपनी और
वापसी के रास्ते आसान हैं अभी
जी नहीं पाउँगा तुम्हारे बिना
पर इत्मीनान रखो, मर नहीं जाऊँगा"

सोचा था
तुम बेयक़ीनी से देखकर मुझे
बेतरह नाराज़ हो जाओगी
गुस्सा आँखों से बहेगा अश्क़ बन कर
और मैं हंस कर मना लूँगा तुम्हे
"एक छोटा सा मज़ाक था, शाम
तुम भी ना!"
आंसू पोंछ कर
हर बार की तरह हंसा दूंगा तुम्हे

मगर इस बार
तुम बे-तासीर* चेहरा लिए
देख रही थी मेरी तरफ यूँ
कि मैं भूल गया सारे अलफ़ाज़
सताना, मनाना, हँसाना

तुमने बहुत ठहरे हुए लहजे में कहा
शायद ठीक कह रहे हो तुम
वापसी के रास्ते आसान हैं अभी
अभीबहुत देर नहीं हुई
और बहुत आराम से पलट गयी

यूँ लगा
इंतज़ार था तुम्हे इस लम्हे का
या डर कि कहीं देर ही ना हो जाए
या इत्मीनान इस बात का कि
वफ़ा जवाब नहीं मांगेगी तुमसे!

धुंधली आँखों से तुम्हे जाते देख कर
दिल ने हौले से कहा
तुमने देर कर दी दोस्त
उसे मनाने में
बहुत देर कर दी!!!”

* बे-तासीर - expressionless

एक लम्हे की मुहब्बत - शाम

मैं ऑफिस से निकल
मिलने जा रही थी जाने किससे
वो सामने ट्रेन के सेकंड क्लास डब्बे में बैठा
माथे पर ढेर सारी शिकनें सजाए
जाने क्या सोच रहा था

धूप में जली रंगत, बालों में हलकी सी चांदी 
हाथ में ब्राउन बेल्ट वाली घड़ी
शिकन-आलूद नीली शर्ट
और गले में लटकती टाई
कुछ भी तो अलग नहीं था उसमे
मुम्बई की बेपनाह भीड़ का एक बेनाम हिस्सा

फिर उसने नज़रें उठायी
वहम था शायद मेरा
पर एक पल के लिए
कुछ कहा उसने आँखों में मेरे 
क्या कुछ नहीं था उस लम्हे में
बारिश, रातें, दुआ, इबादत
सुकून, लुत्फ़, उम्मीद, अश्क़...

मुहब्बत तो नहीं मगर
एक नज़्म उभरी है सीने में आज...