मैंने तो यूँ ही कह दिया था,
"सुनो! चाहो तो पलट जाओ,
कि मंज़िल दूर है अपनी और
वापसी के रास्ते आसान हैं अभी
जी नहीं पाउँगा तुम्हारे बिना
पर इत्मीनान रखो, मर नहीं जाऊँगा"
सोचा था
तुम बेयक़ीनी से देखकर मुझे
बेतरह नाराज़ हो जाओगी
गुस्सा आँखों से बहेगा अश्क़ बन कर
और मैं हंस कर मना लूँगा तुम्हे
"एक छोटा सा मज़ाक था, शाम
तुम भी ना!"
आंसू पोंछ कर
हर बार की तरह हंसा दूंगा तुम्हे
मगर इस बार
तुम बे-तासीर* चेहरा लिए
देख रही थी मेरी तरफ यूँ
कि मैं भूल गया सारे अलफ़ाज़
सताना, मनाना, हँसाना
तुमने बहुत ठहरे हुए लहजे में कहा
“शायद ठीक कह रहे हो तुम
वापसी के रास्ते आसान हैं अभी
अभी… बहुत देर नहीं हुई”
और बहुत आराम से पलट गयी
यूँ लगा
इंतज़ार था तुम्हे इस लम्हे का
या डर कि कहीं देर ही ना हो जाए
या इत्मीनान इस बात का कि
वफ़ा जवाब नहीं मांगेगी तुमसे!
धुंधली आँखों से तुम्हे जाते देख कर
दिल ने हौले से कहा
“तुमने देर कर दी दोस्त
उसे मनाने में
बहुत देर कर दी!!!”
* बे-तासीर - expressionless
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