Sunday 31 August 2014

"Sometimes words are not enough" - Lemony Snicket


बहुत चाहा कोई नज़्म तुम्हारे नाम कर दूँ,
तुम्हारे नाम के आगे लेकिन बढ़ नहीं पाया.
कभी सोचा तुम्हारे साथ अफ़क़* तक चला जाऊं,
तुम्हारे साथ से बेहतर कोई मुक़ाम* क्या होगा?
तुम्हे शिकायत रहती है, मैं बातें नहीं करता,
तुम्हारी आवाज़ में, जानां,  मेरे लफ्ज़ खो से जाते हैं.
ख्वाहिश है कि दुआओं में माँगा करूँ तुम्हे ,
मगर किससे? सजदे तो सारे तेरे नाम के पढ़े हैं

तुम्हारी इज़हार*-ए-मुहब्बत की ख़्वाहिश ने 'शाम'
मुझे बहुत उलझन में डाल रखा है

*अफक - zenith
*मुक़ाम - place
*इज़हार - declaration

Saturday 30 August 2014

"Honor the space between 'no longer' and 'not yet'" - Nancy Lewis

यही मुनासिब* है
कि बदग़ुमानियां* क़ायम रहें

अभी मैं इतना बेहिस नहीं हुआ
कि दामन बचा कर गुज़र जाऊं तेरी गली से
अभी तू इतना संगदिल नहीं हुआ
कि मुस्कुरा कर नज़रें मिला सके मुझसे
अभी चाँद रातें अज़ाब नहीं हुईं 
अभी दिल में तेरे मुहब्बत का भरम बाक़ी है

कुछ अश्क़ बाक़ी हैं पलकों पर मेरे 
तेरी भीगी रातों का हिसाब चुकाना है अभी
मेरे नाम पर आज भी चौंक पड़ता है तू 
इस रिश्ते का कुछ बोझ उतारना बाक़ी है
अभी तन्हाई का आदी नहीं हुआ मैं
अभी वफ़ा पर एतमाद बाक़ी है 

पुरानी किताबों में सूखे फूल अब भी मिलते हैं
तूने डायरी के सारे पन्ने जलाये नहीं हैं अभी
कुछ दिन और ये दूरियां क़ायम रहें 
यही मुनासिब है कि बदग़ुमानियां क़ायम रहें
मेरे दिल से पूरी तरह उतरा नहीं है तू
तूने मुझे नज़रों से गिराया नहीं है अभी 

दोनों को जल्दी है रास्ता बदलने की
ज़रा आहिस्ता, मोड़ आया नहीं है अभी
यही मुनासिब है.

*मुनासिब - appropriate 
*बदग़ुमानियां - misunderstandings

Sunday 17 August 2014

मैंने सोचा, तुम मसरूफ बहुत हो
तुमने समझा, मैं मग़रूर बहुत हूँ
देखो, तो एक ही घर में थे दोनों
पूछो, तो मुद्दत हो गयी मुलाक़ात हुए.

Sunday 18 May 2014

बॉस की तल्ख़ सी बातों पर
मैं जब बेवजह मुस्कुराता हूँ
तुम याद आते हो...

शिकायत नहीं ख़ुद से
बस एक ख़्याल सा है
तुम्हारी बातों पर भी यूँ ही मुस्कुरा दिया होता
आज मुस्कुराने की एक वजह होती शायद!!!

Sunday 4 May 2014

Friend-zoned

दोस्ती और मुहब्बत के बीच
बहुत धुंधली सी एक सरहद
मैं,
धुंध के बहाने से
जाने कब सरहद पार कर गया
तुम, मगर,
धुंध के ख़ौफ़ से
सरहद तक कभी आए ही नहीं!

Saturday 12 April 2014

कभी यूँ भी तो हो...

कभी यूँ भी तो हो

तुम, स्टीयरिंग पर उँगलियाँ बजाते,
स्टीरियो के साथ गाते
कोई नग़मा गुनगुनाओ मेरे लिए
मैं, तुम्हारे झिड़कियों के बावजूद
शीशे गिराकर कार के
समुन्दर की सीली* हवाओं का इस्तक़बाल* करूँ

तुम, लाइटर हाथों में लिए
क़हक़हे लगाते हुए, ठिठक जाओ मुझे देख
गिरा कर धीरे से वह अधजली सिगरेट
एड़ी तले मसल दो उसे
मैं, अपने हील्स भूल कर कहीं
ठंडी सफ़ेद साहिल की रेत पर
नंगे पाँव भागूँ तुम्हारे पीछे

तुम, लैपटॉप पर थिरकती उँगलियों को रोक
मेरा आँचल थाम लो
मैं, किसी नज़्म को कागज़ पर अधूरी छोड़
उसे पूरी करूँ सीने पर तुम्हारे

कभी यूँ भी तो हो
तुम परेशान हो मुस्तक़बिल* का सोच कर
मैं माज़ी* को भुला कर मुत्मईं* हो जाऊँ

*सीली - moist /humid
*इस्तक़बाल - welcome
*मुस्तक़बिल - future 
*माज़ी - past
*मुत्मईं - satisfied

Tuesday 8 April 2014

a new beginning

वो घर छोड़ दिया मैंने
जहाँ कभी हम साथ दाख़िल हुए थे
तुम्हारा कुछ सामान भी बाँध लायी हूँ
फुर्सत मिले तो आकर ले जाना

कुछ अधजले सिगरेट के टुकड़े
बिस्तर के कोने में ऐसे सिमटे पड़े थे
मानो जल्दी में बुझाए हों किसी ने
शायद मेरी नाराज़गी के डर से छिपाया था
या बाद के दिनों में,
नाराज़गी में फ़ेंक दिया हों दो-तीन  कश लेकर

तुम्हारे किताबों की शेल्फ़ पर एक कोने में
पीले पन्ने वाली
गुलज़ार की नज़मों का कलेक्शन पड़ा है
उसके पहले सफ़हे* पर
तुमने अपनी बेतरतीब* हैंड-राइटिंग में लिखा था
एक छोटा सा शेर मेरे लिए
ज़रा पानी छलक गया था, मेरा नाम मिट गया है अब

सिराहने वाली टेबल पर
चंद अधलिखे ख़त भी रखे थे
कुछ में मुझे मुखातिब* किया है तुमने
कुछ में रास्ता बदलने की वजह समझायी है
कहने को कितना कुछ था तुम्हारे पास
कुछ कह ही देते - गुफ्तगू* हो जाती

अलमारी के नीचे के कोने में
एक पुरानी सफ़ेद शर्ट भूल गए तुम 
मरीन ड्राइव पर जब एक नुकीले पत्थर से लगकर
मेरे बांह में हलकी सी खरोंच आ गयी थी
लाख डांटने के बावजूद
शर्ट की आस्तीन रख दी थी तुमने
खून के दो छोटे धब्बों को
कभी धोने ही नहीं दिया था

कैमेरे की एक पुरानी रील भी पड़ी है
हिम्मत नहीं हुई स्टूडियो जाने की
सोचती हूँ धूप दिखा दूं उन्हें
यादें दिल में ही अच्छी लगती हैं

बाथरूम के आईने में
बहुत टूटा बिखरा, लहू-लहू सा
अपना अक्स भी दिखा मुझे
रूह के ज़ख्म भी, जिस्म के नील भी मिले

वो घर छोड़ दिया मैंने
तुम्हारा कुछ सामान भी बाँध लायी हूँ
फुर्सत मिले तो आकर ले जाना
इन्हे संभाल कर रख सकूँ
मेरी नए घर में इतनी जगह नहीं

*सफ़हे - page
*बेतरतीब - haphazard
*मुखातिब - address
*गुफ्तगू - conversation

Sunday 6 April 2014

फ्लैशबैक

कुछ था?
या कुछ भी नहीं?

वो जो साथ की रातें थी
क्या सिर्फ मैंने ख्वाब जलाये थे?
मेरे नाम का एक भी नहीं था
जो साहिल पर घरौंदे बनाये थे?
सजदे जो करते थे तुम
मेरे नाम की कभी कोई दुआ नहीं थी?
घंटों फ़ोन पे बातें जो थी
उनमें रूह की कोई सदा* नहीं थी?
बारिशों में जो भीगे थे तुम
मेरी खातिर? या मजबूरी थी कोई?
नज़्म भी मेरे नाम की लिखी थी
रफ़ाक़त* थी या तजुर्बा* था कोई?

आज मिले हो यूँ अजनबी बन कर
कि
समझ नहीं आता
मुहब्बत थी
या दिल्लगी थी कोई!

 *सदा - call out to
*रफ़ाक़त - fellowship
*तजुर्बा - experiment

अभी देर नहीं हुई

मैंने तो यूँ ही कह दिया था,
"सुनो! चाहो तो पलट जाओ,
कि मंज़िल दूर है अपनी और
वापसी के रास्ते आसान हैं अभी
जी नहीं पाउँगा तुम्हारे बिना
पर इत्मीनान रखो, मर नहीं जाऊँगा"

सोचा था
तुम बेयक़ीनी से देखकर मुझे
बेतरह नाराज़ हो जाओगी
गुस्सा आँखों से बहेगा अश्क़ बन कर
और मैं हंस कर मना लूँगा तुम्हे
"एक छोटा सा मज़ाक था, शाम
तुम भी ना!"
आंसू पोंछ कर
हर बार की तरह हंसा दूंगा तुम्हे

मगर इस बार
तुम बे-तासीर* चेहरा लिए
देख रही थी मेरी तरफ यूँ
कि मैं भूल गया सारे अलफ़ाज़
सताना, मनाना, हँसाना

तुमने बहुत ठहरे हुए लहजे में कहा
शायद ठीक कह रहे हो तुम
वापसी के रास्ते आसान हैं अभी
अभीबहुत देर नहीं हुई
और बहुत आराम से पलट गयी

यूँ लगा
इंतज़ार था तुम्हे इस लम्हे का
या डर कि कहीं देर ही ना हो जाए
या इत्मीनान इस बात का कि
वफ़ा जवाब नहीं मांगेगी तुमसे!

धुंधली आँखों से तुम्हे जाते देख कर
दिल ने हौले से कहा
तुमने देर कर दी दोस्त
उसे मनाने में
बहुत देर कर दी!!!”

* बे-तासीर - expressionless

एक लम्हे की मुहब्बत - शाम

मैं ऑफिस से निकल
मिलने जा रही थी जाने किससे
वो सामने ट्रेन के सेकंड क्लास डब्बे में बैठा
माथे पर ढेर सारी शिकनें सजाए
जाने क्या सोच रहा था

धूप में जली रंगत, बालों में हलकी सी चांदी 
हाथ में ब्राउन बेल्ट वाली घड़ी
शिकन-आलूद नीली शर्ट
और गले में लटकती टाई
कुछ भी तो अलग नहीं था उसमे
मुम्बई की बेपनाह भीड़ का एक बेनाम हिस्सा

फिर उसने नज़रें उठायी
वहम था शायद मेरा
पर एक पल के लिए
कुछ कहा उसने आँखों में मेरे 
क्या कुछ नहीं था उस लम्हे में
बारिश, रातें, दुआ, इबादत
सुकून, लुत्फ़, उम्मीद, अश्क़...

मुहब्बत तो नहीं मगर
एक नज़्म उभरी है सीने में आज...

Monday 17 March 2014

एक लम्हे की मुहब्बत - शायान

मैं ढीली टाई और शिकन-आलूद* शर्ट में
लोकल ट्रेन के दुसरे दर्जे में बैठा
मुम्बई की भागती-दौड़ती भीड़ से जूझता
सांसें लेने की कोशिश कर रहा था...

तुम शायद ऑफिस से निकल
मिलने जा रही थी किसी से
थके चेहरे पे खूब पानी के छीटों से
जगाना चाहा था हिसों* को अपनी
कानो में सस्ते से इअर-रिंग डाल रखे थे
शायद ट्रेन में ही लिया होगा कभी

कुछ ऐसा नहीं था
की मैं देखता मुड़ कर दुबारा
ट्रेन धक्के खाती हुई
अभी निकलने को ही थी स्टेशन से
की तुम किसी बात पर मुस्कुरायी

एक पल के लिए मदहम पड़ गयी मुम्बई की रफ़्तार भी
दूसरे लम्हे, स्टेशन वो छूट गया पीछे कहीं

एक लम्हे की मुहब्बत थी वो
लम्हे भर में गुज़र गयी
हाँ, लजज़त उसकी रहेगी कुछ दिनों तक होंटों पर
कुछ दिनों तक मुस्कुराऊंगा मैं...


*शिकन-आलूद - wrinkled, crumpled
*हिस - senses

भूख

तुम्हे याद तो होगा
बड़े गुरूर से एक दावा किया था कई बार
मुहब्बत को कभी क़ुर्बान कर भी दूं लेकिन
अना तो फिर भी अज़ीज़ है...
तुम अजीब सी नज़रों से देखती मुझे
गिला नहीं, गुस्सा भी नहीं
शक हुआ था एक बार
तरस के कुछ साये थे तुम्हारी नज़रों में
या तंज़ था शायद.
पहला हिस्सा अना का अपनी
जला दिया था फेरों की अग्नि में तुम्हारे
छोटे से एक ब्रीफ़केस में तमाम यादें लिए
स्टेशन पे कर रही थी इंतज़ार मेरा
और पहुँच कर मैंने, बस यूँ कहा
"चलो घर छोड़ आऊँ तुम्हे,
सब परेशां हो रहे होंगे"
तंज़ था शायद आँखों में तुम्हारे
या बे-यकीनी...
एक दुसरे वक़्त,
ख्वाबों के पीछे दौड़ने की
क़ीमत चुकाई थी नक़द में
बाबा के दिए हुए सोने की बालियां देते वक़्त
माँ  की आँखों में बे-यकीनी थी
या दर्द...
अब याद पड़ता है
कुछ पैसे ज़यादा मिले थे उस दिन
सोनार के तराज़ू पे
एक हिस्सा अना का भी चढ़ा आया था शायद
आईने में अपने अक्स को देखा जो आज
आँखों से दर्द छलक रहा था शायद
या भूख...
थोड़ी खुददारी बची है किसी कोने में अब भी
उसे गिरवी रख दूं कहीं
एक वक़्त का खाना हो जाए

Sunday 16 February 2014

कभी ख़ुद को देखूं तेरी नज़र से मैं


कभी ख़ुद को देखूं तेरी नज़र से मैं

देखूं
क्या है जो तुझे नागवार है इतना
सीने में मेरे लिए ग़ुबार है कितना
सारे शिकवे गिले सुनूं, तेरी नफरत की इन्तहा देखूं
माज़ी की गली जाऊं, रंजिशों की इब्तदा देखूं  
कभी ख़ुद को देखूं तेरी नज़र से मैं

देखूं
मेरी हस्ती क्यों नापसंद है तुझे
मैं इतना तो बुरा नहीं, ये कैसा रंज है तुझे
तेरी नाराज़गी का सबब जानूँ, कुछ उलझनें उधार रख लूँ मैं
जो नज़र-अंदाज़  किए थे कभी, उन अश्क़ों को चख लूँ मैं 
कभी ख़ुद को देखूं तेरी नज़र से मैं

देखूं
कैसे एक ग़लती माफ़ी के परे हो गई
जो मैं था तेरे लिए, वो कैसे दूसरे हो गए
तेरे ख्वाबों की करची चुनू, कुछ पुराने ज़ख्म खुरच दूँ मैं
वफ़ा के तेरे मयार पर, ख़ुद अपनी मुहब्बत परख लूँ मैं
कभी ख़ुद को देखूं तेरी नज़र से मैं

अपने गुनाहों के हिसाब लूँ ख़ुद से
तेरे सवालों के जवाब लूँ ख़ुद से
कि थक गया हूँ ख़ुद तक के सफर से मैं
कभी ख़ुद को देखूं तेरी नज़र से मैं 

Sunday 12 January 2014

Nirbhaya: The girl in every girl

अश्क़ नहीं, अब लहू बहाओ

अहसास तो हो कि जूनून थका नहीं है अभी
रागों में दौड़ता खून जमा नहीं है अभी
अहसास तो हो कि बेहिस हुए नहीं हैं हम
दर्द हो, कि अभी भरे नहीं हैं ज़ख्म
अहसास हो कि आँखों में शर्म बची है थोड़ी सी
ज़मीर सांसें ले रहा है, उखड़ी ही सही

सिसकियाँ नहीं, अब आवाज़ उठाओ
कि ये बस एक की मौत नहीं, क़त्ल है इंसानियत का
एक मुल्क पर सवाल हैं, दामन चाक है हर औरत का
क़ुर्बानियाँ ज़ाया न हो, चिंगारियां दब न जाएं
हर क़ातिल ने पहन रखा है, चेहरा यहाँ शराफत का

ये जो ग़म-ओ-रंज की तस्वीर है, इसे मिटा दो
वो जो सब्र का अहद था, वो सारे वादे भुला दो
अश्क़-ओ-ग़म या सब्र से क्या हुआ हासिल तुम्हे
जिन्हे दबा रखा है अर्सों से, उन शोलों को तुम दबा दो
तू ग़मग़ीन नहीं, लाचार नहीं, मायूस नहीं, मजबूर नहीं
तू निर्भया है, तू अमर है, तेरा अज़्म अभी कमज़ोर नहीं.

The Unposted Letter

तुम आज भी मुझसे मुहब्बत करते हो?
जैसे आज से चंद बरस पहले करते थे
क्या आज भी मुहब्बत इबादत है तुम्हारी?
आज भी पेशानी पे आये बालों को फूँकों से उड़ाते हो?
गालों में आज भी गड्ढे पड़ते हैं, जब तुम मुस्कुराते हो?

तुम्हारी आँखों की चमक बरक़रार है आज भी?
अपनी वजाहत का तुम्हे इक़रार है आज भी?
अब भी साहिल के पत्थरों पर जाते हो तुम?
नज़्मों को पढ़कर अब भी भड़क जाते हो तुम?

गुलाबी रंग आज भी पसंद है तुम्हे?
उस बरसों पुरानी नीली शर्ट को सहेज रखा होगा तुमने
बारिशों से आज भी उलझन होती है न?
सफ़ेद रंग पसंद नहीं था बिलकुल
पर मेरी खातिर अब भी शायद कभी पहन लेते होगे?

काली फीकी रातों से इश्क़ था तुम्हे
अब भी सीढ़ियों पर बैठ, बेतुकी बातें करते हो तारों से?
कभी जो ग़लती से मेरी याद आ जाती है
तो क्या अब भी आँखें भींच लेते हो गुनहगारों से?

"Some promises aren't worth keeping" - Holly Black

याद है?
अक्सर कहा करते थे तुम
"मुझे आवाज़ देना
कहीं भी हूँ, लौट आऊंगा.
कि तुम बिन सफर तो है, मंज़िल नहीं
हर रिश्ता बेमानी है, तुम अगर हासिल नहीं
जानता हूँ वफ़ा की राह मुश्किल है ज़रा
पर वादा करके पलट जाऊं, मैं इतना तो बुज़दिल नहीं"


कितनी सदाएं दी, कितनी बार पुकारा
तुम नहीं आए
मेरी आवाज़ पहुंची नहीं तुम तक
दूरियां बहुत थी न दिलों के दरमियान
या शायद रिश्तों का, रस्मों का, मुहब्बत का
शोर होगा तुम्हारे अतराफ़* में बेपनाह

आज आख़िरी बार आवाज़ दी है
लौट आओ
इस गली से गुज़र जाओ एक बार
ग़लती से ही, मेरे दर पर ठिठक जाओ एक बार
जानती हूँ वफ़ा की राह मुश्किल थी बहुत
बस वादों का भरम रखने, पलट आओ एक बार

*अतराफ़ - surroundings/around

The Peril of Memories

एक पीले कोने वाला ख़त
कुछ गुलज़ार की तहरीरें
गुलाबी शामों को धुंधलाती हुई
चंद स्याह-व-सफ़ेद तसवीरें

अक्सर बिला वजह रुला जाती हैं
तेरी यादें तुझ सा असर रखती हैं

The Beginning of The End

याद है तुम्हे?
जुलाई की एक उमस भरी दुपहर
बारिश थमी नहीं और सूरज सर पर था
तुम बहुत उलझे से मुझसे मिलने आए थे
पूछने पर कहा था
"ऑफिस की परेशानियां हैं
क्या क्या बताऊँ तुम्हें?
साहिल पर चलें?"

तुम भूल गए थे शायद
समंदर से वहशत थी तुम्हे
पानी का शोर तुम्हे अपने अंदर उतरता महसूस होता था

और साहिल पर जब तुम
चेहरे पर आई नमी को
रुमाल में जज़्ब कर रहे थे
मैंने तुम्हारी लहू-रंग आँखें देखी

कभी कहा नहीं मैंने
उस रात मेरा तकिया भी भीगा था
मुझे यक़ीन हो चला था
जुलाई की वो उमस भरी दुपहर
हमारी आख़िरी मुलाक़ातों से एक थी


तुम्हारे उस रुमाल की नमी
मानो बसने वाली थी मेरी पलकों पर

The Hope of Spring

खुश तो बहुत हूँ मैं
तुम्हारे बाद
ज़िन्दगी आसान हो गयी है न

अब लम्बे फ़ोन कॉल्स नहीं होते
रातें अब सुबह के चार बजे नहीं होती
नींदें पलकों के झुरमुट पर झपकियाँ नहीं लेती
अब घर लौटने की जल्दी नहीं होती
दोस्तों के साथ ऊँचे ठहाके लगते हुए ठिठकती नहीं हूँ मैं
तुम्हारा ख्याल नहीं आता

अब सिर्फ अपने लिए रोती हूँ
तुम्हारे आंसुओं का बोझ नहीं उठाती
हाथ की लकीरें कुछ सुलझ गई हैं शायद
मेरा नसीब तुम्हारी क़िस्मत से नहीं जुड़ा अब

ऑफिस में कड़वी बातों को भूलने की खातिर
कॉफ़ी के बारह मग ख़ाली नहीं होते
सफ़ेद रंग अक्सर पहनती हूँ
शामें साहिल पर गुज़रती हैं
तुम्हारे शौक़ से मेरी ख़्वाहिश आज़ाद है अब

तुम्हारे बाद के मौसम
खुशगवार हैं बहुत
हाँ दिल पर ज़रा ख़िज़ां* का साया है
मगर जानां
तुम्हारे साथ के मौसम भी
बहार-रुत* तो कभी न थे

*ख़िज़ां - autumn/fall
*बहार-रुत - spring

Another Attempt at Adaptation - Let Me Tell You Today!

(Another attempt at adaptation. Below are the actual lines by a friend)

let me call you sweetheart and tell you how you look
let me tell you how your one smile throws my thousand troubles away
let me tell you how just a thought of you makes my day

let me take your hand in mine and feel your purity
let me tell you how the most beautiful thing in the world fades in your light
let me tell you how i wanted to tell you all this

let me!

***
मुझे एक इजाज़त दे आज
तुम्हे जी भर कर देखने की, तुम्हे अपना बताने की
मेरी आँखों के सायों में तुम्हारा अक्स दिखाने की

इजाज़त दे मुझे की बता सकूँ मैं
तेरी मुस्कराहट से मेरे ग़म हारते हैं कैसे
तेरे ख्यालों से मेरे दिन रौशन हैं ऐसे
तेरे लम्स से तेरी पाक़ीज़गी को अपने अंदर उतारने की
इजाज़त दे मुझे

इजाज़त दे कि
तुझे बता सकूँ मैं
कायनात को ज़र्रा बनती तुम्हारी रमक़ के बारे में
तुम इजाज़त दो तो
बताऊँ तुम्हे मैं
कितनी शिद्दत से चाहा था तुम्हे ये सब बताना मैंने

इजाज़त दे आज

Because We Deserve a Second Chance!

सुनो
एक आख़िरी मौक़ा दें हमारी मुहब्बत को
उस मोड़ से शुरू करें
जहाँ रिश्तों का कोई नाम नहीं था
बातें करना एक काम नहीं था
ख़ामोशियाँ गुफ्तुगू करती थी हमारी
जब सन्नाटों का इलज़ाम नहीं था

इस बार कुछ अलग करें
तुम अपनी अना भूल आना रास्ते में कहीं
मैं दफ्तर के एक कोने में दफना आउंगी सब शिकवे
मिटटी के प्यालों में चाय पिएंगे तुम्हारी खातिर
तुम भी बारिशों में भीग लेना ज़रा

इस बार जीन्स पर लगे रेत की शिकायत नहीं करुँगी
साहिल पर घरौंदे बनाएँगे ढेर सारे
तुम गुनगुनाना मेरे लिए, वो जो भूल बैठी हूँ
उस नग़मे को फिर से सजा देना होंठों पे मेरे

इस बार भीड़ में हाथ नहीं झटकूंगी तुम्हारा
ऊंचे ठहाके लगाते हैं चलो बेवजह
वह नीली शर्ट याद है? तुम पहन लेना मेरी ख़ातिर
अंजानो की तरह टकराएंगे फिर से सर-ए-राह

ढेर सारे गुब्बारों से चलो रंगे आसमान
एक रात जाग कर बिताएं, बातें करे बेपनाह
तुम्हारी आँखें अब भी बोलती हैं
अपने लफ़्ज़ों को आओ दें एक और ज़ुबां

बहुत लम्बा सफर है मुहब्बत का, शायान
मंज़िल नहीं मिली तो रास्ता बदल कर देखते हैं

The First Signs of Moving On!

मुद्दत से था जिस एक पल का इंतज़ार
वह लम्हा सामने पड़ा है
पर क्यूँ एक ख़लिश है सीने में?
और दिल भी कुछ परेशां सा है

तुम सामने हो मेरे, फिर भी
लगता है मीलों का फ़ासला है दरमियां
तुम भी वही हो, मैं भी वहीँ हूँ
फिर क्यूँ दो अजनबी हैं यहाँ?

तुम्हारी आँखों के साये ख़ामोश हैं
और कहते हो "मुझे ख़ुशी है तुमसे मिल कर"
मैंने होंठ हैं सी लिए
बस दो अश्क़ गिरे हैं गालों से फिसल कर

तुम्हारे ज़मीर की चीख़ फ़िज़ा में गूँज रही है
मेरी रूह की सदा को तुमने भी सुना है चौंक कर
दोनों खामोश हैं
दोनों शर्मसार हैं बेपनाह

दो वजूदों के दरमियां
एक तीसरा साया भी मौजूद हैं यहाँ!

Sunday 5 January 2014

An Adaptation Attempt #1

(Below is the actual poem, by a friend)

Take me with you
Take me before I understand the truth
Take me before I realize i'm dreaming
Take me before I become the slave of my hopes
I have been walking towards you for a life time now
Take me before I'm exhausted and dead
Take me to your world
Where all I can hear is your breath

***

हक़ीक़त की ज़मीन पर पाँव लगने से पहले
मुहब्बत की एक उड़ान दे, शाम ढलने से पहले

अरसा हुआ तेरी ज़ात पर नींदें क़ुर्बान किये हुए
तू ख़्वाब सी एक रात दे, ख़्वाब जलने से पहले

एक सफर तय किया है तुम्हारी तरफ़ मैंने
मंज़िल की एक झलक दे, जान निकलने से पहले

बड़ी बेदर्दी से ज़ख्मों को भुलाया है
तू दर्द की नई मिसाल दे, घाव भरने से पहले

इस बात से कहाँ इंकार कि तू मुक़द्दर है किसी और का
एक पल की क़ुर्बत दे, सदियों बिछड़ने से पहले

Because...You Were!

किसी धुंधली सी शाम में चुपके से आ जाना
किसी बेहोश रात को थोड़ा सा जगा जाना

तुम्हारे बग़ैर सारे मौसम उदास हैं
किसी अफ़सरदा* सी सुबह को यूँ ही हंसा जाना

माना कि ख़फ़ा हो मेरी ज़ात से बहुत
सुनो, इस बार तुम भी मुझे रुला जाना

मुहब्बत का क्या है? हो जाएगी एक दिन
बुझते उम्मीद की शमा को फिर से जला जाना

मौत के दर पे खड़ी है ज़िन्दगी अरसे से
तुम एक अधूरी सांस का क़र्ज़ चुका जाना

ख़्वाबों की मेरी ज़मीन बंजर है शायान
सदियों की जागी आँखें, एक शब सुला जाना

*अफ़सरदा - sad