Sunday, 6 April 2014

फ्लैशबैक

कुछ था?
या कुछ भी नहीं?

वो जो साथ की रातें थी
क्या सिर्फ मैंने ख्वाब जलाये थे?
मेरे नाम का एक भी नहीं था
जो साहिल पर घरौंदे बनाये थे?
सजदे जो करते थे तुम
मेरे नाम की कभी कोई दुआ नहीं थी?
घंटों फ़ोन पे बातें जो थी
उनमें रूह की कोई सदा* नहीं थी?
बारिशों में जो भीगे थे तुम
मेरी खातिर? या मजबूरी थी कोई?
नज़्म भी मेरे नाम की लिखी थी
रफ़ाक़त* थी या तजुर्बा* था कोई?

आज मिले हो यूँ अजनबी बन कर
कि
समझ नहीं आता
मुहब्बत थी
या दिल्लगी थी कोई!

 *सदा - call out to
*रफ़ाक़त - fellowship
*तजुर्बा - experiment

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