वो घर छोड़ दिया मैंने
जहाँ कभी हम साथ दाख़िल हुए थे
तुम्हारा कुछ सामान भी बाँध लायी हूँ
फुर्सत मिले तो आकर ले जाना
कुछ अधजले सिगरेट के टुकड़े
बिस्तर के कोने में ऐसे सिमटे पड़े थे
मानो जल्दी में बुझाए हों किसी ने
शायद मेरी नाराज़गी के डर से छिपाया था
या बाद के दिनों में,
नाराज़गी में फ़ेंक दिया हों दो-तीन कश लेकर
तुम्हारे किताबों की शेल्फ़ पर एक कोने में
पीले पन्ने वाली
गुलज़ार की नज़मों का कलेक्शन पड़ा है
उसके पहले सफ़हे* पर
तुमने अपनी बेतरतीब* हैंड-राइटिंग में लिखा था
एक छोटा सा शेर मेरे लिए
ज़रा पानी छलक गया था, मेरा नाम मिट गया है अब
सिराहने वाली टेबल पर
चंद अधलिखे ख़त भी रखे थे
कुछ में मुझे मुखातिब* किया है तुमने
कुछ में रास्ता बदलने की वजह समझायी है
कहने को कितना कुछ था तुम्हारे पास
कुछ कह ही देते - गुफ्तगू* हो जाती
अलमारी के नीचे के कोने में
एक पुरानी सफ़ेद शर्ट भूल गए तुम
मरीन ड्राइव पर जब एक नुकीले पत्थर से लगकर
मेरे बांह में हलकी सी खरोंच आ गयी थी
लाख डांटने के बावजूद
शर्ट की आस्तीन रख दी थी तुमने
खून के दो छोटे धब्बों को
कभी धोने ही नहीं दिया था
कैमेरे की एक पुरानी रील भी पड़ी है
हिम्मत नहीं हुई स्टूडियो जाने की
सोचती हूँ धूप दिखा दूं उन्हें
यादें दिल में ही अच्छी लगती हैं
बाथरूम के आईने में
बहुत टूटा बिखरा, लहू-लहू सा
अपना अक्स भी दिखा मुझे
रूह के ज़ख्म भी, जिस्म के नील भी मिले
वो घर छोड़ दिया मैंने
तुम्हारा कुछ सामान भी बाँध लायी हूँ
फुर्सत मिले तो आकर ले जाना
इन्हे संभाल कर रख सकूँ
मेरी नए घर में इतनी जगह नहीं
*सफ़हे - page
*बेतरतीब - haphazard
*मुखातिब - address
*गुफ्तगू - conversation
जहाँ कभी हम साथ दाख़िल हुए थे
तुम्हारा कुछ सामान भी बाँध लायी हूँ
फुर्सत मिले तो आकर ले जाना
कुछ अधजले सिगरेट के टुकड़े
बिस्तर के कोने में ऐसे सिमटे पड़े थे
मानो जल्दी में बुझाए हों किसी ने
शायद मेरी नाराज़गी के डर से छिपाया था
या बाद के दिनों में,
नाराज़गी में फ़ेंक दिया हों दो-तीन कश लेकर
तुम्हारे किताबों की शेल्फ़ पर एक कोने में
पीले पन्ने वाली
गुलज़ार की नज़मों का कलेक्शन पड़ा है
उसके पहले सफ़हे* पर
तुमने अपनी बेतरतीब* हैंड-राइटिंग में लिखा था
एक छोटा सा शेर मेरे लिए
ज़रा पानी छलक गया था, मेरा नाम मिट गया है अब
सिराहने वाली टेबल पर
चंद अधलिखे ख़त भी रखे थे
कुछ में मुझे मुखातिब* किया है तुमने
कुछ में रास्ता बदलने की वजह समझायी है
कहने को कितना कुछ था तुम्हारे पास
कुछ कह ही देते - गुफ्तगू* हो जाती
अलमारी के नीचे के कोने में
एक पुरानी सफ़ेद शर्ट भूल गए तुम
मरीन ड्राइव पर जब एक नुकीले पत्थर से लगकर
मेरे बांह में हलकी सी खरोंच आ गयी थी
लाख डांटने के बावजूद
शर्ट की आस्तीन रख दी थी तुमने
खून के दो छोटे धब्बों को
कभी धोने ही नहीं दिया था
कैमेरे की एक पुरानी रील भी पड़ी है
हिम्मत नहीं हुई स्टूडियो जाने की
सोचती हूँ धूप दिखा दूं उन्हें
यादें दिल में ही अच्छी लगती हैं
बाथरूम के आईने में
बहुत टूटा बिखरा, लहू-लहू सा
अपना अक्स भी दिखा मुझे
रूह के ज़ख्म भी, जिस्म के नील भी मिले
वो घर छोड़ दिया मैंने
तुम्हारा कुछ सामान भी बाँध लायी हूँ
फुर्सत मिले तो आकर ले जाना
इन्हे संभाल कर रख सकूँ
मेरी नए घर में इतनी जगह नहीं
*सफ़हे - page
*बेतरतीब - haphazard
*मुखातिब - address
*गुफ्तगू - conversation
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