Sunday 12 January 2014

Nirbhaya: The girl in every girl

अश्क़ नहीं, अब लहू बहाओ

अहसास तो हो कि जूनून थका नहीं है अभी
रागों में दौड़ता खून जमा नहीं है अभी
अहसास तो हो कि बेहिस हुए नहीं हैं हम
दर्द हो, कि अभी भरे नहीं हैं ज़ख्म
अहसास हो कि आँखों में शर्म बची है थोड़ी सी
ज़मीर सांसें ले रहा है, उखड़ी ही सही

सिसकियाँ नहीं, अब आवाज़ उठाओ
कि ये बस एक की मौत नहीं, क़त्ल है इंसानियत का
एक मुल्क पर सवाल हैं, दामन चाक है हर औरत का
क़ुर्बानियाँ ज़ाया न हो, चिंगारियां दब न जाएं
हर क़ातिल ने पहन रखा है, चेहरा यहाँ शराफत का

ये जो ग़म-ओ-रंज की तस्वीर है, इसे मिटा दो
वो जो सब्र का अहद था, वो सारे वादे भुला दो
अश्क़-ओ-ग़म या सब्र से क्या हुआ हासिल तुम्हे
जिन्हे दबा रखा है अर्सों से, उन शोलों को तुम दबा दो
तू ग़मग़ीन नहीं, लाचार नहीं, मायूस नहीं, मजबूर नहीं
तू निर्भया है, तू अमर है, तेरा अज़्म अभी कमज़ोर नहीं.

The Unposted Letter

तुम आज भी मुझसे मुहब्बत करते हो?
जैसे आज से चंद बरस पहले करते थे
क्या आज भी मुहब्बत इबादत है तुम्हारी?
आज भी पेशानी पे आये बालों को फूँकों से उड़ाते हो?
गालों में आज भी गड्ढे पड़ते हैं, जब तुम मुस्कुराते हो?

तुम्हारी आँखों की चमक बरक़रार है आज भी?
अपनी वजाहत का तुम्हे इक़रार है आज भी?
अब भी साहिल के पत्थरों पर जाते हो तुम?
नज़्मों को पढ़कर अब भी भड़क जाते हो तुम?

गुलाबी रंग आज भी पसंद है तुम्हे?
उस बरसों पुरानी नीली शर्ट को सहेज रखा होगा तुमने
बारिशों से आज भी उलझन होती है न?
सफ़ेद रंग पसंद नहीं था बिलकुल
पर मेरी खातिर अब भी शायद कभी पहन लेते होगे?

काली फीकी रातों से इश्क़ था तुम्हे
अब भी सीढ़ियों पर बैठ, बेतुकी बातें करते हो तारों से?
कभी जो ग़लती से मेरी याद आ जाती है
तो क्या अब भी आँखें भींच लेते हो गुनहगारों से?

"Some promises aren't worth keeping" - Holly Black

याद है?
अक्सर कहा करते थे तुम
"मुझे आवाज़ देना
कहीं भी हूँ, लौट आऊंगा.
कि तुम बिन सफर तो है, मंज़िल नहीं
हर रिश्ता बेमानी है, तुम अगर हासिल नहीं
जानता हूँ वफ़ा की राह मुश्किल है ज़रा
पर वादा करके पलट जाऊं, मैं इतना तो बुज़दिल नहीं"


कितनी सदाएं दी, कितनी बार पुकारा
तुम नहीं आए
मेरी आवाज़ पहुंची नहीं तुम तक
दूरियां बहुत थी न दिलों के दरमियान
या शायद रिश्तों का, रस्मों का, मुहब्बत का
शोर होगा तुम्हारे अतराफ़* में बेपनाह

आज आख़िरी बार आवाज़ दी है
लौट आओ
इस गली से गुज़र जाओ एक बार
ग़लती से ही, मेरे दर पर ठिठक जाओ एक बार
जानती हूँ वफ़ा की राह मुश्किल थी बहुत
बस वादों का भरम रखने, पलट आओ एक बार

*अतराफ़ - surroundings/around

The Peril of Memories

एक पीले कोने वाला ख़त
कुछ गुलज़ार की तहरीरें
गुलाबी शामों को धुंधलाती हुई
चंद स्याह-व-सफ़ेद तसवीरें

अक्सर बिला वजह रुला जाती हैं
तेरी यादें तुझ सा असर रखती हैं

The Beginning of The End

याद है तुम्हे?
जुलाई की एक उमस भरी दुपहर
बारिश थमी नहीं और सूरज सर पर था
तुम बहुत उलझे से मुझसे मिलने आए थे
पूछने पर कहा था
"ऑफिस की परेशानियां हैं
क्या क्या बताऊँ तुम्हें?
साहिल पर चलें?"

तुम भूल गए थे शायद
समंदर से वहशत थी तुम्हे
पानी का शोर तुम्हे अपने अंदर उतरता महसूस होता था

और साहिल पर जब तुम
चेहरे पर आई नमी को
रुमाल में जज़्ब कर रहे थे
मैंने तुम्हारी लहू-रंग आँखें देखी

कभी कहा नहीं मैंने
उस रात मेरा तकिया भी भीगा था
मुझे यक़ीन हो चला था
जुलाई की वो उमस भरी दुपहर
हमारी आख़िरी मुलाक़ातों से एक थी


तुम्हारे उस रुमाल की नमी
मानो बसने वाली थी मेरी पलकों पर

The Hope of Spring

खुश तो बहुत हूँ मैं
तुम्हारे बाद
ज़िन्दगी आसान हो गयी है न

अब लम्बे फ़ोन कॉल्स नहीं होते
रातें अब सुबह के चार बजे नहीं होती
नींदें पलकों के झुरमुट पर झपकियाँ नहीं लेती
अब घर लौटने की जल्दी नहीं होती
दोस्तों के साथ ऊँचे ठहाके लगते हुए ठिठकती नहीं हूँ मैं
तुम्हारा ख्याल नहीं आता

अब सिर्फ अपने लिए रोती हूँ
तुम्हारे आंसुओं का बोझ नहीं उठाती
हाथ की लकीरें कुछ सुलझ गई हैं शायद
मेरा नसीब तुम्हारी क़िस्मत से नहीं जुड़ा अब

ऑफिस में कड़वी बातों को भूलने की खातिर
कॉफ़ी के बारह मग ख़ाली नहीं होते
सफ़ेद रंग अक्सर पहनती हूँ
शामें साहिल पर गुज़रती हैं
तुम्हारे शौक़ से मेरी ख़्वाहिश आज़ाद है अब

तुम्हारे बाद के मौसम
खुशगवार हैं बहुत
हाँ दिल पर ज़रा ख़िज़ां* का साया है
मगर जानां
तुम्हारे साथ के मौसम भी
बहार-रुत* तो कभी न थे

*ख़िज़ां - autumn/fall
*बहार-रुत - spring

Another Attempt at Adaptation - Let Me Tell You Today!

(Another attempt at adaptation. Below are the actual lines by a friend)

let me call you sweetheart and tell you how you look
let me tell you how your one smile throws my thousand troubles away
let me tell you how just a thought of you makes my day

let me take your hand in mine and feel your purity
let me tell you how the most beautiful thing in the world fades in your light
let me tell you how i wanted to tell you all this

let me!

***
मुझे एक इजाज़त दे आज
तुम्हे जी भर कर देखने की, तुम्हे अपना बताने की
मेरी आँखों के सायों में तुम्हारा अक्स दिखाने की

इजाज़त दे मुझे की बता सकूँ मैं
तेरी मुस्कराहट से मेरे ग़म हारते हैं कैसे
तेरे ख्यालों से मेरे दिन रौशन हैं ऐसे
तेरे लम्स से तेरी पाक़ीज़गी को अपने अंदर उतारने की
इजाज़त दे मुझे

इजाज़त दे कि
तुझे बता सकूँ मैं
कायनात को ज़र्रा बनती तुम्हारी रमक़ के बारे में
तुम इजाज़त दो तो
बताऊँ तुम्हे मैं
कितनी शिद्दत से चाहा था तुम्हे ये सब बताना मैंने

इजाज़त दे आज

Because We Deserve a Second Chance!

सुनो
एक आख़िरी मौक़ा दें हमारी मुहब्बत को
उस मोड़ से शुरू करें
जहाँ रिश्तों का कोई नाम नहीं था
बातें करना एक काम नहीं था
ख़ामोशियाँ गुफ्तुगू करती थी हमारी
जब सन्नाटों का इलज़ाम नहीं था

इस बार कुछ अलग करें
तुम अपनी अना भूल आना रास्ते में कहीं
मैं दफ्तर के एक कोने में दफना आउंगी सब शिकवे
मिटटी के प्यालों में चाय पिएंगे तुम्हारी खातिर
तुम भी बारिशों में भीग लेना ज़रा

इस बार जीन्स पर लगे रेत की शिकायत नहीं करुँगी
साहिल पर घरौंदे बनाएँगे ढेर सारे
तुम गुनगुनाना मेरे लिए, वो जो भूल बैठी हूँ
उस नग़मे को फिर से सजा देना होंठों पे मेरे

इस बार भीड़ में हाथ नहीं झटकूंगी तुम्हारा
ऊंचे ठहाके लगाते हैं चलो बेवजह
वह नीली शर्ट याद है? तुम पहन लेना मेरी ख़ातिर
अंजानो की तरह टकराएंगे फिर से सर-ए-राह

ढेर सारे गुब्बारों से चलो रंगे आसमान
एक रात जाग कर बिताएं, बातें करे बेपनाह
तुम्हारी आँखें अब भी बोलती हैं
अपने लफ़्ज़ों को आओ दें एक और ज़ुबां

बहुत लम्बा सफर है मुहब्बत का, शायान
मंज़िल नहीं मिली तो रास्ता बदल कर देखते हैं

The First Signs of Moving On!

मुद्दत से था जिस एक पल का इंतज़ार
वह लम्हा सामने पड़ा है
पर क्यूँ एक ख़लिश है सीने में?
और दिल भी कुछ परेशां सा है

तुम सामने हो मेरे, फिर भी
लगता है मीलों का फ़ासला है दरमियां
तुम भी वही हो, मैं भी वहीँ हूँ
फिर क्यूँ दो अजनबी हैं यहाँ?

तुम्हारी आँखों के साये ख़ामोश हैं
और कहते हो "मुझे ख़ुशी है तुमसे मिल कर"
मैंने होंठ हैं सी लिए
बस दो अश्क़ गिरे हैं गालों से फिसल कर

तुम्हारे ज़मीर की चीख़ फ़िज़ा में गूँज रही है
मेरी रूह की सदा को तुमने भी सुना है चौंक कर
दोनों खामोश हैं
दोनों शर्मसार हैं बेपनाह

दो वजूदों के दरमियां
एक तीसरा साया भी मौजूद हैं यहाँ!

Sunday 5 January 2014

An Adaptation Attempt #1

(Below is the actual poem, by a friend)

Take me with you
Take me before I understand the truth
Take me before I realize i'm dreaming
Take me before I become the slave of my hopes
I have been walking towards you for a life time now
Take me before I'm exhausted and dead
Take me to your world
Where all I can hear is your breath

***

हक़ीक़त की ज़मीन पर पाँव लगने से पहले
मुहब्बत की एक उड़ान दे, शाम ढलने से पहले

अरसा हुआ तेरी ज़ात पर नींदें क़ुर्बान किये हुए
तू ख़्वाब सी एक रात दे, ख़्वाब जलने से पहले

एक सफर तय किया है तुम्हारी तरफ़ मैंने
मंज़िल की एक झलक दे, जान निकलने से पहले

बड़ी बेदर्दी से ज़ख्मों को भुलाया है
तू दर्द की नई मिसाल दे, घाव भरने से पहले

इस बात से कहाँ इंकार कि तू मुक़द्दर है किसी और का
एक पल की क़ुर्बत दे, सदियों बिछड़ने से पहले

Because...You Were!

किसी धुंधली सी शाम में चुपके से आ जाना
किसी बेहोश रात को थोड़ा सा जगा जाना

तुम्हारे बग़ैर सारे मौसम उदास हैं
किसी अफ़सरदा* सी सुबह को यूँ ही हंसा जाना

माना कि ख़फ़ा हो मेरी ज़ात से बहुत
सुनो, इस बार तुम भी मुझे रुला जाना

मुहब्बत का क्या है? हो जाएगी एक दिन
बुझते उम्मीद की शमा को फिर से जला जाना

मौत के दर पे खड़ी है ज़िन्दगी अरसे से
तुम एक अधूरी सांस का क़र्ज़ चुका जाना

ख़्वाबों की मेरी ज़मीन बंजर है शायान
सदियों की जागी आँखें, एक शब सुला जाना

*अफ़सरदा - sad