Sunday 31 August 2014

"Sometimes words are not enough" - Lemony Snicket


बहुत चाहा कोई नज़्म तुम्हारे नाम कर दूँ,
तुम्हारे नाम के आगे लेकिन बढ़ नहीं पाया.
कभी सोचा तुम्हारे साथ अफ़क़* तक चला जाऊं,
तुम्हारे साथ से बेहतर कोई मुक़ाम* क्या होगा?
तुम्हे शिकायत रहती है, मैं बातें नहीं करता,
तुम्हारी आवाज़ में, जानां,  मेरे लफ्ज़ खो से जाते हैं.
ख्वाहिश है कि दुआओं में माँगा करूँ तुम्हे ,
मगर किससे? सजदे तो सारे तेरे नाम के पढ़े हैं

तुम्हारी इज़हार*-ए-मुहब्बत की ख़्वाहिश ने 'शाम'
मुझे बहुत उलझन में डाल रखा है

*अफक - zenith
*मुक़ाम - place
*इज़हार - declaration

Saturday 30 August 2014

"Honor the space between 'no longer' and 'not yet'" - Nancy Lewis

यही मुनासिब* है
कि बदग़ुमानियां* क़ायम रहें

अभी मैं इतना बेहिस नहीं हुआ
कि दामन बचा कर गुज़र जाऊं तेरी गली से
अभी तू इतना संगदिल नहीं हुआ
कि मुस्कुरा कर नज़रें मिला सके मुझसे
अभी चाँद रातें अज़ाब नहीं हुईं 
अभी दिल में तेरे मुहब्बत का भरम बाक़ी है

कुछ अश्क़ बाक़ी हैं पलकों पर मेरे 
तेरी भीगी रातों का हिसाब चुकाना है अभी
मेरे नाम पर आज भी चौंक पड़ता है तू 
इस रिश्ते का कुछ बोझ उतारना बाक़ी है
अभी तन्हाई का आदी नहीं हुआ मैं
अभी वफ़ा पर एतमाद बाक़ी है 

पुरानी किताबों में सूखे फूल अब भी मिलते हैं
तूने डायरी के सारे पन्ने जलाये नहीं हैं अभी
कुछ दिन और ये दूरियां क़ायम रहें 
यही मुनासिब है कि बदग़ुमानियां क़ायम रहें
मेरे दिल से पूरी तरह उतरा नहीं है तू
तूने मुझे नज़रों से गिराया नहीं है अभी 

दोनों को जल्दी है रास्ता बदलने की
ज़रा आहिस्ता, मोड़ आया नहीं है अभी
यही मुनासिब है.

*मुनासिब - appropriate 
*बदग़ुमानियां - misunderstandings

Sunday 17 August 2014

मैंने सोचा, तुम मसरूफ बहुत हो
तुमने समझा, मैं मग़रूर बहुत हूँ
देखो, तो एक ही घर में थे दोनों
पूछो, तो मुद्दत हो गयी मुलाक़ात हुए.