बहुत चाहा कोई नज़्म तुम्हारे नाम कर दूँ,
तुम्हारे नाम के आगे लेकिन बढ़ नहीं पाया.
कभी सोचा तुम्हारे साथ अफ़क़* तक चला जाऊं,
तुम्हारे साथ से बेहतर कोई मुक़ाम* क्या होगा?
तुम्हे शिकायत रहती है, मैं बातें नहीं करता,
तुम्हारी आवाज़ में, जानां, मेरे लफ्ज़ खो से जाते हैं.
ख्वाहिश है कि दुआओं में माँगा करूँ तुम्हे ,
मगर किससे? सजदे तो सारे तेरे नाम के पढ़े हैं
तुम्हारी इज़हार*-ए-मुहब्बत की ख़्वाहिश ने 'शाम'
मुझे बहुत उलझन में डाल रखा है
*अफक - zenith
*मुक़ाम - place
*इज़हार - declaration
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