Khamosh Alfaaz
for the deafening silence within you and me
Sunday, 17 August 2014
मैंने सोचा, तुम मसरूफ बहुत हो
तुमने समझा, मैं मग़रूर बहुत हूँ
देखो, तो एक ही घर में थे दोनों
पूछो, तो मुद्दत हो गयी मुलाक़ात हुए.
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