अश्क़ नहीं, अब लहू बहाओ
अहसास तो हो कि जूनून थका नहीं है अभी
रागों में दौड़ता खून जमा नहीं है अभी
अहसास तो हो कि बेहिस हुए नहीं हैं हम
दर्द हो, कि अभी भरे नहीं हैं ज़ख्म
अहसास हो कि आँखों में शर्म बची है थोड़ी सी
ज़मीर सांसें ले रहा है, उखड़ी ही सही
सिसकियाँ नहीं, अब आवाज़ उठाओ
कि ये बस एक की मौत नहीं, क़त्ल है इंसानियत का
एक मुल्क पर सवाल हैं, दामन चाक है हर औरत का
क़ुर्बानियाँ ज़ाया न हो, चिंगारियां दब न जाएं
हर क़ातिल ने पहन रखा है, चेहरा यहाँ शराफत का
ये जो ग़म-ओ-रंज की तस्वीर है, इसे मिटा दो
वो जो सब्र का अहद था, वो सारे वादे भुला दो
अश्क़-ओ-ग़म या सब्र से क्या हुआ हासिल तुम्हे
जिन्हे दबा रखा है अर्सों से, उन शोलों को तुम दबा दो
तू ग़मग़ीन नहीं, लाचार नहीं, मायूस नहीं, मजबूर नहीं
तू निर्भया है, तू अमर है, तेरा अज़्म अभी कमज़ोर नहीं.
अहसास तो हो कि जूनून थका नहीं है अभी
रागों में दौड़ता खून जमा नहीं है अभी
अहसास तो हो कि बेहिस हुए नहीं हैं हम
दर्द हो, कि अभी भरे नहीं हैं ज़ख्म
अहसास हो कि आँखों में शर्म बची है थोड़ी सी
ज़मीर सांसें ले रहा है, उखड़ी ही सही
सिसकियाँ नहीं, अब आवाज़ उठाओ
कि ये बस एक की मौत नहीं, क़त्ल है इंसानियत का
एक मुल्क पर सवाल हैं, दामन चाक है हर औरत का
क़ुर्बानियाँ ज़ाया न हो, चिंगारियां दब न जाएं
हर क़ातिल ने पहन रखा है, चेहरा यहाँ शराफत का
ये जो ग़म-ओ-रंज की तस्वीर है, इसे मिटा दो
वो जो सब्र का अहद था, वो सारे वादे भुला दो
अश्क़-ओ-ग़म या सब्र से क्या हुआ हासिल तुम्हे
जिन्हे दबा रखा है अर्सों से, उन शोलों को तुम दबा दो
तू ग़मग़ीन नहीं, लाचार नहीं, मायूस नहीं, मजबूर नहीं
तू निर्भया है, तू अमर है, तेरा अज़्म अभी कमज़ोर नहीं.
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