याद है तुम्हे?
जुलाई की एक उमस भरी दुपहर
बारिश थमी नहीं और सूरज सर पर था
तुम बहुत उलझे से मुझसे मिलने आए थे
पूछने पर कहा था
"ऑफिस की परेशानियां हैं
क्या क्या बताऊँ तुम्हें?
साहिल पर चलें?"
जुलाई की एक उमस भरी दुपहर
बारिश थमी नहीं और सूरज सर पर था
तुम बहुत उलझे से मुझसे मिलने आए थे
पूछने पर कहा था
"ऑफिस की परेशानियां हैं
क्या क्या बताऊँ तुम्हें?
साहिल पर चलें?"
तुम भूल गए थे शायद
समंदर से वहशत थी तुम्हे
पानी का शोर तुम्हे अपने अंदर उतरता महसूस होता था
और साहिल पर जब तुम
चेहरे पर आई नमी को
रुमाल में जज़्ब कर रहे थे
मैंने तुम्हारी लहू-रंग आँखें देखी
कभी कहा नहीं मैंने
उस रात मेरा तकिया भी भीगा था
मुझे यक़ीन हो चला था
जुलाई की वो उमस भरी दुपहर
हमारी आख़िरी मुलाक़ातों से एक थी
समंदर से वहशत थी तुम्हे
पानी का शोर तुम्हे अपने अंदर उतरता महसूस होता था
और साहिल पर जब तुम
चेहरे पर आई नमी को
रुमाल में जज़्ब कर रहे थे
मैंने तुम्हारी लहू-रंग आँखें देखी
कभी कहा नहीं मैंने
उस रात मेरा तकिया भी भीगा था
मुझे यक़ीन हो चला था
जुलाई की वो उमस भरी दुपहर
हमारी आख़िरी मुलाक़ातों से एक थी
तुम्हारे उस रुमाल की नमी
मानो बसने वाली थी मेरी पलकों पर
मानो बसने वाली थी मेरी पलकों पर
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