Sunday, 12 January 2014

The Unposted Letter

तुम आज भी मुझसे मुहब्बत करते हो?
जैसे आज से चंद बरस पहले करते थे
क्या आज भी मुहब्बत इबादत है तुम्हारी?
आज भी पेशानी पे आये बालों को फूँकों से उड़ाते हो?
गालों में आज भी गड्ढे पड़ते हैं, जब तुम मुस्कुराते हो?

तुम्हारी आँखों की चमक बरक़रार है आज भी?
अपनी वजाहत का तुम्हे इक़रार है आज भी?
अब भी साहिल के पत्थरों पर जाते हो तुम?
नज़्मों को पढ़कर अब भी भड़क जाते हो तुम?

गुलाबी रंग आज भी पसंद है तुम्हे?
उस बरसों पुरानी नीली शर्ट को सहेज रखा होगा तुमने
बारिशों से आज भी उलझन होती है न?
सफ़ेद रंग पसंद नहीं था बिलकुल
पर मेरी खातिर अब भी शायद कभी पहन लेते होगे?

काली फीकी रातों से इश्क़ था तुम्हे
अब भी सीढ़ियों पर बैठ, बेतुकी बातें करते हो तारों से?
कभी जो ग़लती से मेरी याद आ जाती है
तो क्या अब भी आँखें भींच लेते हो गुनहगारों से?

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