Sunday, 12 January 2014

The Hope of Spring

खुश तो बहुत हूँ मैं
तुम्हारे बाद
ज़िन्दगी आसान हो गयी है न

अब लम्बे फ़ोन कॉल्स नहीं होते
रातें अब सुबह के चार बजे नहीं होती
नींदें पलकों के झुरमुट पर झपकियाँ नहीं लेती
अब घर लौटने की जल्दी नहीं होती
दोस्तों के साथ ऊँचे ठहाके लगते हुए ठिठकती नहीं हूँ मैं
तुम्हारा ख्याल नहीं आता

अब सिर्फ अपने लिए रोती हूँ
तुम्हारे आंसुओं का बोझ नहीं उठाती
हाथ की लकीरें कुछ सुलझ गई हैं शायद
मेरा नसीब तुम्हारी क़िस्मत से नहीं जुड़ा अब

ऑफिस में कड़वी बातों को भूलने की खातिर
कॉफ़ी के बारह मग ख़ाली नहीं होते
सफ़ेद रंग अक्सर पहनती हूँ
शामें साहिल पर गुज़रती हैं
तुम्हारे शौक़ से मेरी ख़्वाहिश आज़ाद है अब

तुम्हारे बाद के मौसम
खुशगवार हैं बहुत
हाँ दिल पर ज़रा ख़िज़ां* का साया है
मगर जानां
तुम्हारे साथ के मौसम भी
बहार-रुत* तो कभी न थे

*ख़िज़ां - autumn/fall
*बहार-रुत - spring

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