Saturday, 12 April 2014

कभी यूँ भी तो हो...

कभी यूँ भी तो हो

तुम, स्टीयरिंग पर उँगलियाँ बजाते,
स्टीरियो के साथ गाते
कोई नग़मा गुनगुनाओ मेरे लिए
मैं, तुम्हारे झिड़कियों के बावजूद
शीशे गिराकर कार के
समुन्दर की सीली* हवाओं का इस्तक़बाल* करूँ

तुम, लाइटर हाथों में लिए
क़हक़हे लगाते हुए, ठिठक जाओ मुझे देख
गिरा कर धीरे से वह अधजली सिगरेट
एड़ी तले मसल दो उसे
मैं, अपने हील्स भूल कर कहीं
ठंडी सफ़ेद साहिल की रेत पर
नंगे पाँव भागूँ तुम्हारे पीछे

तुम, लैपटॉप पर थिरकती उँगलियों को रोक
मेरा आँचल थाम लो
मैं, किसी नज़्म को कागज़ पर अधूरी छोड़
उसे पूरी करूँ सीने पर तुम्हारे

कभी यूँ भी तो हो
तुम परेशान हो मुस्तक़बिल* का सोच कर
मैं माज़ी* को भुला कर मुत्मईं* हो जाऊँ

*सीली - moist /humid
*इस्तक़बाल - welcome
*मुस्तक़बिल - future 
*माज़ी - past
*मुत्मईं - satisfied

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