मोहब्बत में जिस्म पर नील नहीं पड़ते,
होंठों के कोनों से खून नहीं रिसता;
ढलती शामों से वहशत* नहीं होती,
शनासा* चेहरों से खौफ नहीं आता.
ज़ख़्मी चीख़ें सिसकती नहीं हैं रात भर,
दोस्तों की आँखों से हमदर्दी नहीं झांकती;
चूड़ियाँ कब टूटती है रोज़ कलाई में
मोहब्बत में अना* यूँ रौंदी नहीं जाती.
होंठों के कोनों से खून नहीं रिसता;
ढलती शामों से वहशत* नहीं होती,
शनासा* चेहरों से खौफ नहीं आता.
ज़ख़्मी चीख़ें सिसकती नहीं हैं रात भर,
दोस्तों की आँखों से हमदर्दी नहीं झांकती;
चूड़ियाँ कब टूटती है रोज़ कलाई में
मोहब्बत में अना* यूँ रौंदी नहीं जाती.
किसी और रिश्ते का वास्ता दो,
कुछ जज़्बात ज़िंदा हो जाएँ
तुम मोहब्बत का नाम लेते हो,
तो बस नफरत जागती है.
*वहशत - fear
*शनासा - familiar
*अना - self-esteem
कुछ जज़्बात ज़िंदा हो जाएँ
तुम मोहब्बत का नाम लेते हो,
तो बस नफरत जागती है.
*वहशत - fear
*शनासा - familiar
*अना - self-esteem
No comments:
Post a Comment