Thursday, 10 December 2015

Domestic Violence

मोहब्बत में जिस्म पर नील नहीं पड़ते,
होंठों के कोनों से खून नहीं रिसता;
ढलती शामों से वहशत* नहीं होती,
शनासा* चेहरों से खौफ नहीं आता.
ज़ख़्मी चीख़ें सिसकती नहीं हैं रात भर,
दोस्तों की आँखों से हमदर्दी नहीं झांकती;
चूड़ियाँ कब टूटती है रोज़ कलाई में
मोहब्बत में अना* यूँ रौंदी नहीं जाती.
किसी और रिश्ते का वास्ता दो,
कुछ जज़्बात ज़िंदा हो जाएँ
तुम मोहब्बत का नाम लेते हो,
तो बस नफरत जागती है.

*वहशत - fear
*शनासा - familiar
*अना - self-esteem

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