Thursday, 10 December 2015

That Day After Days

मोबाइल में जितने नंबर थे,
सब से दोस्ती निभा ली.
अँधेरे एक कमरे में, लैपटॉप की स्क्रीन से,
अनदेखे चेहरों की खुशियों में शिरकत* भी हो गयी .
भूले बिसरे रिश्तों को,
वक़्त न मिलने के रस्मी* बहाने सुना दिए.
ऑफिस के ग़ैर-ज़रूरी से काम,
कल पर डाल दिए सारे.

अब और टाला नहीं जाता...
बहुत दिनों से कुछ बोलने की कोशिश में है,

चलो आज ज़मीर* की सुन ही लेते हैं.

*शिरकत - participate/join
*रस्मी - customary
*ज़मीर - conscience

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