Thursday, 10 December 2015

I Apologize!

दाग़ मेरे दामन पर लगा है,
उंगलियां मेरे किरदार पर उठी हैं,
सवाल मेरे वजूद पर है.

माँ की चेहरे पर अजब शर्मिंदगी बसती है,
बहन की ख़ौफ़ज़दा आँखों में नमी सी रहती है,
अब्बा के बूढ़े कंधे कुछ और झुक गए हैं.
आइना देखने की हिम्मत नहीं होती अब,
मेरी दुआओं में असर नहीं रहा कोई,
मेरा ख़ुदा शायद नाराज़ है मुझसे.

मगर,
तुम क्यूँ रोती हो?
तुम पाक-दामन अक्स हो ख़ुदा का.
तुम्हारे हर अश्क़ का जवाब मुझ को देना है.
ये मुंह छिपाना किस लिए?
शर्मसार तो मैं हूँ.
तुम पर हुए हर ज़ुल्म का हिसाब मुझ से होना है

तुम क्यूँ रोती हो?
गुनहगार तो मैं हूँ
मर्द तो मैं हूँ!

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