Thursday, 10 December 2015

Ghazal

तुझे जुस्तजू है सराब* की, मैं हक़ीक़तों से जुड़ा हुआ
मैंने रास्ते जब भुला दिए, तेरा सफ़र वहां से शुरू हुआ

हमक़दम तू था ज़रूर, बस वास्ता कुछ अलग सा,
तुझे मंज़िलों का शौक़ है, मैं कारवाँ से बंधा हुआ

एक लम्हे में कब ली दोनों ने साथ सांसें,
तुम्हे मुस्तक़बिल* की फ़िक्र बहुत, मैं माज़ी* से नहीं जुदा हुआ

मैं जहाँ था, तू वहां है अब, ये क्या मोड़ है ज़िन्दगी?
तेरी रफ़ाक़तों* का आग़ाज़* है, मैं मुहब्बतों से थका हुआ!


*सराब - mirage
*मुस्तक़बिल - future
*माज़ी - past
*रफ़ाक़त - friendship /companionship
*आग़ाज़ - beginning

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